वेलकम फ्रेंड्स आप सभी का फिर से एक बार स्वागत है| थिएटर्स में रिलीज हुई विजय देवरकोंडा और मराल ठाकुर स्टार तेलुगु फिल्म यानी कि द फैमिली स्टार के बारे में वैसे तो मेरा रिव्यू काफी लेट आ रहा है तो अब तक तो जो लोग सोशल मीडिया पर चीजों को फॉलो करते हैं उन्हें पता चल ही गया होगा कि फिल्म को लेकर क्या माहौल बना हुआ है तो क्या सही में यह फिल्म उस तरीके की है तो मेरा जवाब है यह फिल्म हर किसी के लिए अलग तरीके से काम कर सकती है पर दो केस में मेरे ओपिनियन में यह फिल्म आपके लिए काम कर सकती है पहला केस तो यह कि अगर आपको फिल्म अगर आप देख रहे हो और आपके लिए फिल्म के अंदर क्या कैरेक्टर डेवलप किया जा रहा है जो कॉन्फ्लेट है वो किस तरीके से यहां पे क्रिएट किया गया है जो ड्रामा है वो किस तरीके से बिल्ड हो रहा है फिल्म में इमोशंस है या नहीं यह सभी चीजें अगर आपके लिए ज्यादा मैटर नहीं करती है और आपको चाहिए एक टाइम पास सी फिल्म जो उसको आप देखते रहे वो आपको ज्यादा परेशान ना करें पर आपको कुछ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्रोवाइड भी ना करें तब तब फिल्म के लास्ट 30 मिनट को इग्नोर करते हुए आप इस फिल्म को देख सकते हो या फिर 30 मिनट से पहले ही जो है थिएटर छोड़ के बाहर जा सकते हो दूसरा केस जहां पर आप इस फिल्म को देख सकते हो उसकी अगर मैं बात करूं तो अक्सर होता है कि जब हम रात को खाने बैठते हैं तो तब मन करता है कि चलो टीवी देख लिया जाए और रिमोट हाथ में लिया चैनल चेंज किया और कोई फिल्म सामने आ गई बीच से ही चल रही होती है तो वहां से देखना स्टार्ट कर दिया अच्छी लगी तो कंप्लीट किया नहीं लगी तो वहीं पर छोड़ दिया फिर कभी अगर खाते हुए फिल्म चल रही होगी तो बीच से कहीं से से फिर से उठा के देख लिया और टुकड़ों टुकड़ों में फिल्म को देख लिया तो देख लिया नहीं देखा तो कोई बात नहीं तो इस केस में ये फिल्म आप देख सकते हो देखिए फिल्म के अंदर डेफिनेटली कुछ ऐसे सींस हैं कुछ ऐसे मोमेंट्स हैं जो थोड़े बहुत फनी थे फिल्म देखते समय चेहरे पर हंसी आती है मुस्कान आती है साथ ही साथ फिल्म का जो फर्स्ट हाफ था अगर इसी फिल्म की थीम के हिसाब से देखें डायरेक्टर की पिछली डिसपिटर फिल्म के हिसाब से देखें तो डेफिनेटली फिल्म का फर्स्ट हाफ डिसेंट था अच्छा खासा एक इंटरवल ट्विस्ट आता है हां वो बात अलग है कि इंटरवल ट्विस्ट पर अगर आप ज्यादा दिमाग लड़ा होगे तो लॉजिकली वो भी बिना हाथ पैर के ही नजर आती है पर उतना डीप ना जाते हुए अगर आप फिल्म को देख रहे हो तो डेफिनेटली फिल्म का ट्विस्ट जो है इंटरवल पर आता है वो कुल मिलाकर फिल्म के फर्स्ट हाफ को जो है एक डिसेंट वॉच बना देता है तब तक फिल्म कहीं पर परेशान नहीं कर रही होती है फिल्म का जो बेसिक थीम हमें यहां पर देखने को मिलता है वो मैं कहूंगा कि काफी अच्छा था किस तरीके से ऐशु आराम की जिंदगी जीने वाले लोग दूर से मिडिल क्लास लोगों को जो है जज करने की कोशिश करते हैं वो अगर कहीं कहीं पर अ कहीं पर कंजूसी कर रहे हैं या फिर कहीं पर पैसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो उसके पीछे का कोर कारण क्या है उसे ना समझते हुए जो है उनको कोई ना कोई टैग दे जाते हैं वहीं दूसरे तरफ भी जो है मिडिल क्लास लोग जो है अमीरों को देखकर कोई स्टेटमेंट पास करते हैं उन्हें भी वो जज करने की कोशिश करते हैं उनके ऐशो आराम की जिंदगी के पीछे क्या प्रॉब्लम्स है उन्हें ना ही वो समझने की कोशिश करते हैं और वास्तविक में वो किस तरीके के इंसान है ना उसे समझने की वो कोशिश करते हैं तो ये जो चीज थी फिल्म की फिल्म उसके साथ डील करती है ये एक बेसिक थीम थी जहां पर इन दोनों ही तरफ से जो है एक अंडरस्टैंडिंग को डेवलप करना एट द सेम टाइम यहां पर एक प्यार का एक ईगो का एक जो क्लैश है वो दिखाना इन सभी चीजों को पकड़ते हुए फिल्म का ड्रामा जो है आगे बढ़ना चाहिए था पर एक बार फिल्म सेकंड हाफ में घुसती है उसके बाद अगर शुरुआत के 10-12 मिनट को अगर छोड़ दिया जाए तो फिल्म जिस तरीके से मानो अपने ही इस थीम का इस मिडिल क्लास फैमिली का जिस तरीके से मजाक उड़ाना स्टार्ट करती है जानबूझ के कह लो या फिर अ जाने में कह लो पर जिस तरीके का एक मजाक बनाना स्टार्ट करती है अपने ही इस सब्जेक्ट अपने ही इस थीम के प्रति 1 पर की भी सिंसेरिटी नहीं दिखाती है और वहां पर सेकंड हाफ के अंदर कभी भी कुछ भी हो रहा है ये जो चीजें हैं कहीं पर ऊपर जा रही है कहीं पर नीचे आ रही है कभी भी जो है कैरेक्टर्स एक दूसरे के प्रति प्यार फील करने लगते हैं कभी भी कैरेक्टर्स के अंदर ईगो आ जाता है और ये जो मिडिल क्लास बंदे को फिल्म के अंदर दिखाने की कोशिश की गई है उसको लेकर फर्स्ट हाफ में जो चीजें दिखाई गई थी वो तो सेकंड हाफ में जाकर पूरी तरीके से खत्म सी ही हो जाती है अब देखो कोई एक मिडिल क्लास बंदा है अगर उसका फोकस है कि उसे लाइफ में कुछ आगे करना है अपने परिवार का यह जो स्टेटस है सो कॉल्ड स्टेटस है उसे जो है सुधारना है तो वो जो है एक सिंसेरिटी के साथ काम करेगा वो कोई भी ऐसा कदम तो एटलीस्ट नहीं लेगा कि इतनी बड़ी जॉब जो उसे मिली है वो उसके हाथों से चली जाए पर हमारा विजय देवर कुंडे का कैरेक्टर फिल्म के अंदर क्या करता है यूएसए के अंदर जाता है जहां पर मन करे वहां पर लुंगी पहनकर बिना शर्ट के घूमता है और सिर्फ इसलिए नहीं घूम रहा है कि वो अपने कैरेक्टर को मतलब नेचुरल दिखाना चाहता है कि भाई मैं ऐसा ही हूं और मैं अपने आप को दिखाने की कोशिश कर रहा हूं ऐसा कोई उसका मोटिव नहीं है उसका मोटिव है यहां पर किसी और को परेशान करना और अपने ईगो को सेटिस्फाई करना अरे भाई एक बंदा जिसने कुछ सालों पहले एक बड़ी जॉब को छोड़ दिया था केवल अपनी फैमिली के लिए वो आज अगर अपनी फैमिली के ही स्टेटस को सुधारने के लिए उस जॉब को फिर से जॉइन कर रहा है तो वो उस काम को सिंसियर के साथ निभाएगा ना या फिर वो इस तरीके की हरकतें करेगा कि कभी भी जो है कोई भी बहुत ही आसानी से उसे निकाल सकता हो हां वो बात अलग है कि अब आप कहोगे कि भाई परशुराम की फिल्म के अंदर आप लॉजिक एक्सपेक्ट कर रहे हो सेंसिबिलिटी एक्सपेक्ट कर रहे हो तो ये आपकी गलती है तो वो गलती जो है मैं अपनी एक्सेप्ट करता हूंfamily star पर जो भी हो कुल मिलाकर मैं यही कहना चाहता हूं कि फिल्म के अंदर ये जो मिडिल क्लास फैमिली या फिर मिडिल क्लास लड़के को दिखाने की कोशिश की गई है विजय देवर कुंडा के कैरेक्टर के थ्रू वो काम कहीं पर भी 1 पर भी जो है नेचुरल रिलेटेबल फील नहीं होता है सिर्फ ₹ का पेट्रोल डलवा देने से बच्चों के खाने पीने पर रिस्ट्रिक्शन लगा देने से कोई जो है चीजें रिलेटेबल नहीं बन जाती हैं चीजों को ग्राउंडेड रखना पड़ता है बात करने के तरीके से लेकर बॉडी लैंग्वेज से लेकर हर एक सिचुएशन में किस तरीके से बिहेव करना है वो सभी चीजें नेचुरली अगर कनेक्ट होती हैं तब कह सकते हैं कि हां चलो कुछ जो है फिल्म के अंदर रिलेटेबल था family star क्लाइमैक्स में मरणा ठाकुर का कैरेक्टर विजय दौर कुंडा के कैरेक्टर के बारे में इतना कुछ महान महान चीजें बोल जाती हैं कि एक पल को परशुराम को भी डाउट हो जाएगा कि भाई मैंने तो इतना कुछ लिखा ही नहीं था इतना कुछ कहां से बोल रही है
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